Nursery School Fees: महंगाई के इस दौर में जहां रोजमर्रा की चीजों के दाम बढ़ रहे हैं, वहीं शिक्षा का खर्च भी आम परिवारों के लिए बोझ बनता जा रहा है. स्कूलों की फीस अब सिर्फ उच्च शिक्षा या प्राइवेट कॉलेज तक सीमित नहीं रही, बल्कि नर्सरी क्लास में भी फीस का आंकड़ा लाखों में पहुंच चुका है. हाल ही में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पहले ट्विटर) पर एक मां द्वारा शेयर किया गया नर्सरी की फीस का बिल चर्चा का विषय बना हुआ है.
नर्सरी की सालाना फीस ₹2,51,000!
X यूजर अनुराधा तिवारी (@talk2anuradha) ने एक तस्वीर शेयर करते हुए लिखा, “नर्सरी क्लास की फीस 2 लाख 51 हजार! अब ABCD सीखने के लिए भी ₹21,000 महीना लगेंगे.”
उनके द्वारा शेयर किए गए फीस स्ट्रक्चर के अनुसार:
- पहली किस्त: ₹74,000
- बाकी तीन किस्तें: ₹59,000-₹59,000-₹59,000
- इस फीस में ट्यूशन फीस, एडमिशन फीस, इनिशिएशन फीस और रिफंडेबल डिपॉजिट शामिल हैं.
PP1 से लेकर कक्षा 5 तक की फीस 3 लाख से ज्यादा
फीस स्ट्रक्चर में सिर्फ नर्सरी ही नहीं, बल्कि PP1, PP2 और कक्षा 1 से 5 तक की फीस भी शामिल है, जो ₹3,22,000 तक पहुंचती है. यानी जैसे-जैसे कक्षा बढ़ेगी, पढ़ाई का खर्च और ज्यादा होगा.
Class- Nursery
— Anuradha Tiwari (@talk2anuradha) July 30, 2025
Fees – Rs 2,51,000/-
Now, learning ABCD will cost you Rs 21,000 per month.
What are these schools even teaching to justify such a ridiculously high fee? pic.twitter.com/DkWOVC28Qs
सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा
इस पोस्ट को अब तक 7 लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है, और 10 हजार से अधिक यूजर्स ने लाइक किया है.
- एक यूजर ने कहा, “ये एजुकेशन नहीं, एक्सक्लूजन है!”
- दूसरे ने सवाल किया, “क्या भारत में होम स्कूलिंग का विकल्प है?”
- तीसरे ने तंज कसा, “ये स्कूल पैसे अभी कमा लेना चाहते हैं, क्योंकि भविष्य में अप्रासंगिक हो सकते हैं.”
पैरेंट्स ने बताया महंगाई में शिक्षा एक चुनौती
कई मिडिल क्लास पैरेंट्स मानते हैं कि बढ़ती फीस के बीच बच्चों के लिए बचत करना अब एक बड़ा चैलेंज बन गया है.
- “बच्चे के बड़े होने तक बचत करने के लिए जब शुरुआत ही ₹2.5 लाख से हो, तो आगे क्या होगा?”
- “बच्चों की शिक्षा अब सेवा नहीं, एक ‘कमर्शियल प्रोडक्ट’ बन गई है.”
स्कूलों की बढ़ती फीस के पीछे कारण क्या हैं?
एक यूजर ने लिखा, “स्कूल की फीस में सिर्फ पढ़ाई का खर्च नहीं, बल्कि जमीन की कीमत, इंफ्रास्ट्रक्चर, ब्रांडिंग और प्रशासनिक खर्च भी शामिल होते हैं.”
- शहरों में स्कूल के लिए जमीन की कमी,
- लीज न होने पर महंगी जमीन पर बना कैंपस,
- और प्राइवेट स्कूलों द्वारा लग्ज़री फैसिलिटी देने की होड़—ये सभी कारण फीस बढ़ाने में योगदान करते हैं.
आखिर इतने पैसे में क्या पढ़ाया जा रहा है?
- वही सवाल अनुराधा तिवारी ने भी उठाया—”क्या इतना महंगा ABCD सीखना वाजिब है?”
- जब नर्सरी स्तर पर ही फीस प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज जितनी हो जाए, तो पैरेंट्स के मन में यह सवाल आना स्वाभाविक है कि
“क्या यह शिक्षा है या दिखावा?”
“क्या हर पैरेंट्स इसे अफोर्ड कर सकते हैं?”
शिक्षा की दिशा बदल रही है या भटक रही है?
- कई विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत में शिक्षा प्रणाली तेजी से व्यावसायिक होती जा रही है.
- शिक्षा के नाम पर अब ब्रांड वैल्यू, AC क्लासरूम, विदेशी पाठ्यक्रम और एलीट स्टेटस बिक रहा है.
- इसके चलते मूल्य आधारित शिक्षा पीछे छूट रही है और एक वर्ग विशेष के लिए ही स्कूल सुलभ बनते जा रहे हैं.
क्या समाधान है इस समस्या का?
- कुछ यूजर्स ने इस स्थिति से निपटने के लिए होम स्कूलिंग, सरकारी स्कूलों को मजबूत करना और रेगुलेटरी फ्रेमवर्क को सख्त बनाने की वकालत की है.
- सरकार को निजी स्कूलों की फीस पर निगरानी रखनी चाहिए.
- पैरेंट्स को फीस स्ट्रक्चर की पारदर्शिता की मांग करनी चाहिए.
- एक सीमा निर्धारित होनी चाहिए कि किस कक्षा के लिए कितनी फीस उचित मानी जाएगी.